कॉफी विद कुश का नया एपिसोड

नमस्कार दोस्तो..

एक बार फिर हाज़िर है हम कॉफी विद कुशमें एक और ब्लॉगर के साथ.. जी हा दोस्तो इस बार हम आपको मिलवा रहे है.. 'एक उच्च कोटि के व्यंग्यकार, कलकता निवासी शिव कुमार मिश्रा जी से.. तो बस आप लोग भी कॉफी हाथ में लेकर बैठ जाइए.. और लुत्फ़ लीजिए इस मज़ेदार इंटरव्यू का..

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कॉफी विद कुश में मिलिए शिव कुमार मिश्रा जी से

नमस्कार दोस्तो..

एक बार फिर हाज़िर है हम कॉफी विद कुशमें एक और ब्लॉगर के साथ.. जी हा दोस्तो इस बार हम आपको मिलवा रहे है.. 'एक उच्च कोटि के व्यंग्यकार, कलकता निवासी शिव कुमार मिश्रा जी से.. तो बस आप लोग भी कॉफी हाथ में लेकर बैठ जाइए.. और लुत्फ़ लीजिए इस मज़ेदार इंटरव्यू का.. तो आपका ज़्यादा वक़्त ना लेते हुए.. मैं बुलाता हू श्री शिव कुमार जी को..



कुश : नमस्कार मिश्रा जी स्वागत है आपका कॉफी विद कुश में.. कैसा लगा आपको यहा आकर?
शिव जी: धन्यवाद कुश. बहुत बढ़िया लग रहा है. कितने दिनों की साध आज जाकर मिटी. असल में जब भी दूसरों को तुम्हारी काफ़ी पीकर मस्त होते देखा, यही बात मन में आती थी कि पता नहीं कब पीने का मौका मिलेगा? और देखो कि आज तुमने बुला ही लिया. बहुत खुश हूँ. जल्दी से काफ़ी मंगाओ.

कुश : जी बिल्कुल! ये लीजिए आपकी गरमा गरम कॉफी तैयार है..
शिव जी : वाह लाजवाब.. वाकई मज़ा आ गया..

कुश : सबसे पहले तो ये बताइए की ब्लॉगिंग में कैसे आना हुआ आपका?
शिव जी : ये तो मज़बूरी की वजह से हुआ. हम कहीं जा नहीं पाते. हम केवल आने के आदी हैं. लिहाजा ब्लॉग-जगत में आना लगा रहता था. ज्ञान भइया ने ब्लॉग बनाया था और हम वहां टिप्पणी करने आते थे. फिर एक दिन उन्होंने कहा कि ब्लागिंग में आ जाओ. मैंने सोचा टिप्पणी करने आते ही हैं. ब्लागिंग करने भी आ जाते हैं.

कुश : पांडे जी के साथ साझा ब्लॉग बनाने की ज़रूरत क्यो महसूस हुई?
शिव जी: साझा ब्लॉग बनाने की जरूरत इसलिए महसूस हुई क्योंकि मुझे कुछ पता ही नहीं था ब्लागिंग के बारे में. ज्ञान भइया को तब तक कुछ-कुछ पता हो गया था. उन्हें लगा कि वे भी साथ रहेंगे तो टेक्निकल बातें बता सकेंगे. फोटो लगाना, पोस्ट सजाना वगैरह मैं नहीं कर पाटा था.
वैसे एक और बात है. हमदोनों हिन्दी ब्लागिंग के इतिहास में अमर होना चाहते थे. हमें इस बात की ललक थी कि हमारा ब्लाग इतिहास में हिन्दी के प्रथम साझा (मतलब दो लोगों का) ब्लॉग के रूप में दर्ज हो.

कुश : अगर आपको एक और जोड़ी ब्लॉग बनाने का मौका मिले तो किसके साथ बनाएँगे?
शिव जी : नीरज भइया (नीरज गोस्वामी जी) के साथ.

कुश : बचपन के बारे में तो हमने सबसे सवाल किए है.. ये बताइए आपका बचपन कायस गुज़रा?
शिव जी : गुजरा कहाँ? वो तो हमने गुजार लिया. गुल्ली-डंडा, हॉकी और क्रिकेट वगैरह खेलकर और थोड़ी पढाई करके. हमें बचपन गुजारने का बड़ा शौक था. जब छोटे थे तो हमेशा यही सोचते कि कब बड़े होंगे? उस समय इस बात का रोना है. अब इस बात का रोना है कि कभी छोटे नहीं हो सकेंगे. इंसान का जीवन रोने के लिए ही बना है.

कुश : आप सारी शराराते अपनी ब्लॉग पर ही करते है या बचपन में भी करते थे?
शिव जी : लोगों ने हमें शरारती नहीं समझा कभी.. हमारे ऊपर अच्छे बच्चे होने की तोहमत लगा दी. वैसे शरारतों के नाम पर हम लोगों के बगीचे से आम तोड़ लेते थे.. कभी-कभी किसी के घर पर चढ़ी हुई ककड़ी की बेल पर बैठी ककड़ी तोड़ लाते थे.. गाँव में रहने वाला बच्चा शरारतों के मामले में बड़ा गरीब होता है. हाँ, कभी-कभी किसी से मार-पीट कर लेते थे..
क्रिकेट भी खेलते थे तो गाँव के मैदान में. मैदान में इतनी जगह कि गेंद भी खुश रहती थी. बड़ा पछतावा होता है कि बचपन में क्रिकेट खेलकर किसी के घर की खिड़की का शीशा नहीं तोड़ सके..

कुश : बचपन में किस बात से डर लगता था?
शिव जी : अंधेरे से.. गाँव का मकान ऐसा था कि द्वार और घर के आँगन के बीच एक बड़ा सा हाल था. शाम होने के बाद जब भी उससे गुजरते थे तो डर लगता था.

कुश : आपके छोटे भाई साहब ने स्वेटर के बारे में प्रश्न पूछने को कहा है? ज़रा बताइए उस बारे में..
शिव जी : मेरा छोटा भाई दार्जिलिंग गया था. वहां से मेरे लिए एक स्वेटर ले आया था. मुझे देते हुए बोला; "किसी ख़ास दिन पहनना इसे." स्वेटर बहुत पसंद था मुझे. जिस दिन मैं अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन कराने घर से सुबह-सुबह निकला, उसदिन मैंने वो स्वेटर पहन लिया.
जब मैं अपनी शादी के बारे में उसे बता रहा था तो मुझे लग रहा था कि शादी के बात सुनकर वो भौचक्का रह जायेगा. लेकिन मेरी बात सुनकर हंसने लगा और बोला; "मुझे मालूम है. तुमने मेरा दिया हुआ स्वेटर पहना उसी दिन मुझे पता चल गया था." उसकी ये बात मैं कभी नहीं भूलता..

कुश : दोस्तो की नज़र में शिव कुमार मिश्रा कैसे है?
शिव जी: मैं दोस्तों से पूछने का रिस्क नहीं उठाता. कभी नहीं पूछता कि वे मेरे बारे में क्या सोचते हैं? इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि सबकुछ ढंका-तुपा रहता है. गलतफहमी दोनों की नहीं टूटती. न दोस्तों की और न मेरी.

कुश : दुर्योधन की डायरी के बारे में बताइए?
शिव जी : एक दिन आफिस में बैठे हमलोग एक रीयल इस्टेट प्रोजेक्ट में फ्लैट बुक करने के बारे में सोच रहे थे. जिस तरह से रीयल इस्टेट के दाम बढे हैं, उसके बारे में चर्चा करते हुए मैंने कहा; "दुर्योधन ने पांडवों के पाँच गाँव देने की मांग शायद इसलिए ठुकरा दी थी कि इन पाँच गावों में एक गुडगाँव भी था." मेरी इस बात विक्रम और सुदर्शन खूब हँसे. ये कोई चार बजे की बात होगी. और मैंने उसी दिन करीब एक घंटे बाद पहली बार दुर्योधन की डायरी - पेज ३३५० लिखा. उसके बाद लिखते गए.

कुश : दुर्योधन के अलावा और भी किसी की डायरी है आपके पास?
शिव जी : नहीं, डायरी तो नहीं है. हाँ एक दिन मैंने ब्लॉगर हलकान 'विद्रोही' की डायरी के कुछ पेज जरूर पढ़ लिए थे. उसमें जो कुछ पढने को मिला था उसे मैंने अपनी एक पोस्ट में छापा था.

कुश : हाल ही में आपको मिली जेंटल मैन की उपाधि के बारे में क्या कहेंगे?
शिव जी : क्या कहें, कुश? मानव शरीर धारण किया है तो उपाधियों से बच पाना मुश्किल काम है. वैसे भी मेरा जेंटलमैनत्व को प्राप्त होना अनूप भइया को नहीं सोहाया और उन्होंने अपनी कानपुरी व्याख्या से साबित कर दिया कि जेंटलमैनी एक छलावा है. नतीजा ये हुआ कि जेंटलमैनी एक दिन में ही टें बोल गयी.

कुश : आपकी पोस्ट का एक किरदार 'सुदामा' बहुत लोक प्रिय हुआ.. उसके बारे में क्या कहेंगे?
शिव जी : बड़े बेचारे किस्म के इंसान थे सुदामा जी. लेकिन जब से उन्होंने गुरुदेव का सिलिंडर ब्लैक किया है, वे मानवीय समर्थता की अद्भुत ऊंचाई पर पहुँच गए हैं. अब तो क्लर्क से लेकर पत्रकार और पीएच डी के स्टुडेंट तक बन जाते हैं. ठीक उसी सहजता से जैसे हिन्दी फिल्मों का हीरो कुछ भी बन सकता है. सुदामा अब बहुत आगे निकल चुके हैं. फरीदाबाद तक.

कुश : राजेश रोशन जी के ब्लॉग पर एक जुमला लिखा था.. उस पर आपने एक पोस्ट भी लिखी, उस बारे में बताइए?
शिव जी : अब पोस्ट लिख ही दी तो और क्या नया बताऊँ, कुश? वैसे मेरा मानना है कि किसी को छोटा कह देना उचित नहीं है. और अगर आप उस उस इंसान के बारे में केवल उसके लेखन से जानते हैं तो कोई भी जजमेंट पास करना अच्छी बात नहीं. खैर, मुझे अब राजेश रोशन जी से शिकायत नहीं है. उनका सेंस ऑफ़ जजमेंट शायद उन्हें यही करने को कहता है.

कुश : क्या ये सच है की बाल किशन जी जब भी आपके पास आते है.. आपको कोई नया टॉपिक मिल जाता है?
शिव जी : नहीं ये सच नहीं है. सच तो ये है कि जब भी मेरे पास कोई टॉपिक नहीं होता तो मैं उन्हें अपने ऑफिस बुला लेता हूँ.

कुश : आपने एक पोस्ट लिखी थी की कुछ ब्लॉगरो ने अपनी प्रोफाइल में दर्शन शास्त्र का प्रयोग किया है.. क्या आप इसे ग़लत समझते है?
शिव जी : मैंने ग़लत नहीं समझा. वो तो लालमुकुंद जी ने ग़लत समझा था. मैंने तो केवल उनकी आपत्ति पर पोस्ट लिखी थी.

कुश : अब तक आप कितने ब्लॉगर्स से व्यक्तिगत रूप से मिल चुके है? क्या खास लगा आपको उनमे?
शिव जी : अभी तक मैं प्रत्यक्षा जी से, प्रियंकर भइया से, बालकिशन से, ज्ञान भइया से और मीत साहब से मिला हूँ. सभी 'जेंटलमैन' हैं. इनलोगों में सबकुछ ख़ास ही है. अगर ख़ास नहीं होता तो ये लोग ब्लॉगर कैसे बनते?

कुश : क्या आपको लगता है की ब्लॉगर्स को इस तरह से मिलते रहना चाहिए?
शिव जी : हाँ.

कुश : आप अधिकतर व्यंग्य ही लिखते है, कितना मुश्किल होता है व्यंग्य लिखना?
शिव जी : जरा भी मुश्किल नहीं है. व्यंग तो बहुत सस्ते में मिल जाता है. वैसे, इसका मतलब ये मत समझना कि मैं किसी को कम पैसे देकर व्यंग लिखवा लेता हूँ. इसका केवल इतना मतलब है कि व्यंग बिखरा पड़ा है. जहाँ देखो, व्यंग ही व्यंग है.

कुश : ब्लॉगर्स में किसके व्यंग्य आप ज़्यादा पढ़ते है?
शिव जी : अनूप शुक्ल जी, आलोक पुराणिक जी, पल्लवी जी और नीरज बधवार के. मुझे एक बात अच्छी नहीं लगती कि काकेश जी आजकल नहीं लिखते.

कुश : अधिकांश ब्लॉगरो को आपसे टिप्पणी ना मिलने की शिकायत रहती है?
शिव जी : नहीं. किसी ने मुझसे शिकायत नहीं की. एक दिन एक ब्लॉगर बता रहे थे कि अच्छा है जो आप मेरी पोस्ट पर टिप्पणी नहीं करते. उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि एक पोस्ट पर आपने सबसे पहली टिप्पणी की थी. नतीजा ये हुआ कि उसपर और कोई टिप्पणी नहीं आई.

कुश : ब्लॉगिंग में आपके लिए सबसे बड़ी समस्या क्या है?
शिव जी : ब्लागिंग के टेक्निकल आस्पेक्ट की जानकारी. करीब एक साल तीन महीने बाद पिछले महीने ही मैंने लिंक लगाना सीखा.

कुश : हिन्दी ब्लॉग जगत की क्या खास बात लगी आपको?
शिव जी : यही कि इस जगत में सब हिन्दी में लिखते हैं और हिन्दी में पढ़ते हैं.

कुश : ब्लॉग पर कुछ लिखते समय आप क्या ध्यान में रखते है?
शिव जी: टिप्पणियां. पिछली पोस्ट में जितनी मिली थीं, उतनी मिलेंगी तो? हे भगवान एक ज्यादा दिला देना.

कुश : किसी ब्लॉग पर टिप्पणी करना कितना ज़रूरी है?
शिव जी : हम अभी पाठक ढूंढ रहे हैं. दूसरी बात ये कि अभी शुरुआती दौर में है हिन्दी ब्लागिंग. बहुत सारे लोगों को इसके टेक्निकल आस्पेक्ट्स नहीं मालूम हैं. ज्यादातर लोगों के पास जानकारी नहीं रहती कि उनके ब्लॉग पर कौन लोग आए. ऐसे में अगर टिप्पणियां मिल जाएँ तो लिखने वाले को थोड़ी राहत मिलती है कि लोग उसका लिखा हुआ पढ़ रहे हैं.
नए आए लोगों का हौसला बढ़ाना बहुत ज़रूरी है. और कुछ पढने के बाद अगर अच्छा लगा तो क्या अच्छा लगा, ये बता देना एक अच्छा काम है.

कुश : आजकल आपके नाम पर बहुत चिट्ठिया भी आ रही है?
शिव जी : लोग चिट्ठी लिखना भूल गए थे. मुझे चिट्ठी लिखकर लोग चिट्ठी लिखने की नेट प्रैक्टिस कर रहे हैं. वैसे, मैंने अगर जवाब देने का मन बना लिया तो थोड़ी प्रैक्टिस मेरी भी हो जायेगी.

कुश : हिन्दी ब्लॉग जगत का भविष्य कैसा देखते है आप?
शिव जी : भविष्य तो उज्जवल ही दिखाई देता है. हमें अपनी भाषा में कुछ कहने का मौका मिल रहा है. हम कोशिश करके अच्छा लिखें तो मामला आगे बढेगा. हाँ, ये बात ज़रूर है कि लिखनेवाले और पढने वाले, दोनों मेच्योर्ड हो जाएँ तो बहस वगैरह चलाने का औचित्य रहेगा. अगर तीन-चार लोग जो एक-दूसरे को जानते हैं, बहस चलायें तो ऐसी बहस का कोई ख़ास मतलब नहीं है. हाँ, अगर पाठकों की संख्या बढ़े. बहस में भाग लेने वालों की मेच्योरिटी बढ़े तो बहस चलने का मतलब बनेगा.

चलिए अब चलते है हमारे अगले राउंड की तरफ और देखते है की पाठको ने आपसे क्या सवाल किए है..

कुश : ब्‍लॉगजगत में इन दिनों उनकी सज्‍जनता की चर्चा खूब है। वे खुद से भी अधिक सज्‍जन किन्‍हीं को मानते हैं क्‍या, यदि हां तो किन्‍हें - अशोक पाण्डेय जी
शिव जी : अशोक पाण्डेय जी को. जिस देश में कई देश होने के दावे किए जा रहे हैं, और ये बताया जा रहा है कि इंडिया अलग है और भारत अलग. साथ में ये भी बताया जा रहा है कि इन्टरनेट जैसे हथियार इंडिया के हाथ में हैं. अब अगर अशोक जी ऐसे हथियार का इस्तेमाल करके 'भारत' की समस्याओं को उठा रहे हैं तो उनसे बड़ा सज्जन और कौन हो सकता है?

कुश : सिर्फ ब्लॉग जगत के चर्चों के बारे में ही लिखना क्यों पसंद करते हैं। क्यों सिर्फ कुछ ही ब्लॉगर्स के बारे में लिखते हैं। कुछ अलग क्यों नहीं और अकेले अकेले क्यों मीट ऑर्गनाइज करते हैं? - नीतीश राज जी
शिव जी : नहीं-नहीं नीतीश जी, ऐसी बात नहीं है. मैं ब्लागर्स के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखता. मैं ब्लॉग जगत के चर्चों के बारे में भी लिखना पसंद नहीं करता. जहाँ तक कुछ अलग लिखने की बात है तो मैं आजतक यही समझता था कि मैंने बहुत सारे विषयों पर लिखा है. खासकर हर समसामयिक मुद्दे पर. लेकिन मेरी इस गलतफहमी को नीतीश भाई ने तोड़ दिया. ग़लतफहमी टूटनी ही चाहिए. एक बार फिर से सोचने की जरूरत है.

कुश : शिव भाई, आपके शहर कलकता की सबसे प्रिय बात क्या लगती है आपको ? - लावण्या जी
शिव जी : बहुत कठिन सवाल है लावण्या जी. मुझे पूरा शहर अच्छा लगता है. सबसे प्रिय एक बात जो है वो है यहाँ के लोगों का संस्कृति के प्रति प्यार.

कुश : शिव बाबू यह बतायें कि ब्लॉगर्स के संबंध में ऐसा कौन सा प्रश्न उनसे पूछा जा सकता है जिसका जबाब देने में उनके पसीने छूट जायेंगे और उसका जबाब वो क्या देंगे? - समीर लाल जी
शिव जी : सवाल है, "ये बेनामी टिप्पणी तो तुम्हारे आई पी एड्रेस से मिली है. तुम अब भी कहोगे कि तुम बेनामी कमेन्ट नहीं करते?" जवाब होगा; "क्या समीर भाई? मैं आपकी कितनी इज्ज़त करता हूँ. मैं ऐसा लिख सकता हूँ भला? किसी ने मेरा आई पी एड्रेस चोरी कर लिया होगा."

कुश : भद्रपुरुष ने अपनी याददाश्त में पिछली अभद्रता किससे, कब और क्यों की थी"? - बस्तर
शिव जी : ये सवाल तो किसी भद्रपुरुष से है. शायद अगले एपिसोड के किसी ब्लॉगर से. वैसे कौन आ रहा है अगले एपिसोड में, कुश?

कुश : आख़िर ऎसा कौन सा यक्षप्रश्न है.. जो केवल आप पर ही लागू हो रहा है, और तुर्रा यह कि.. पूछा भी न जाये, बिन पूछे रहा भी न जाये - डा. अमर कुमार जी
शिव जी : क्या कह रहे हैं? यक्ष अभी तक है इस भूमंडल पर!

कुश : शिव के साथ व्यंगकार का टैग चिपक लिया है। वह दूर हो सकता है क्या? - ज्ञानदत्त जी
शिव जी : जी भैया, मैं प्रयासरत हू..

कुश : शिवजी, नये ब्लॉगरों को हिट पोस्टें देने के लिए क्या गुरुमंत्र देंगे? उत्तर में गीता का उपदेश नहीं चलेगा। - सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी
शिव जी : हिट पोस्ट से क्या मतलब है सिद्धार्थ जी का? हिट का मतलब ये तो नहीं कि आपने लिखा और लोग आकर उसे अपनी टिप्पणियों से हिट कर गए? टिप्पणियों की हिट से पोस्ट और ब्लॉगर दोनों धरासायी.
वैसे हिट का मतलब अगर सुपरहिट, मेगाहिट है, जैसे फिल्में होती हैं तो मैं यही सोचता हूँ कि कोई गुरुमंत्र नहीं है. कौन से पोस्ट 'हिट' जाए और कौन सी सुपरहिट, कोई नहीं जानता.

चलिए पाठको के सवाल तो बड़े दिलचस्प रहे.. अब चलते है हमारे वन लाइनर राउंड की तरफ.. और इस बार एक वन लाइनर राउंड में आपको एक लाइन में बताना है हमारे ब्लॉगर मित्रो के बारे में..


कुश : समीर जी -
शिव जी : टिप्पणी सम्राट


कुश : पांडे जी -
शिव जी : भइया.


कुश : पंगेबाज -
शिव जी : एक बेहतरीन इंसान.


कुश : बॉल किशन जी-
शिव जी : डिप्टी टिप्पणी सम्राट

कुश : पल्लवी जी
शिव जी : संवेदनशील 'हुकुम'


कुश : अनूप जी :
शिव जी : मौज सम्राट


कुश : और हम, अजी हमारे बारे में भी तो बताइए..
शिव जी : आईडिया सम्राट


अब चलते है हमारे अगले राउंड खुराफाती सवालो की तरफ..

कुश : पुलिस का फ़ोन नंबर 100 क्यो होता है?
शिव जी : इशारा है. मतलब सौ से नीचे? कभी नहीं.


कुश : खिस्यानी बिल्ली खंबा ही क्यो नोचती है?
शिव जी : बिल्ली को हर उस चीज से प्यार नहीं होता जिस चीज से कुत्ते को प्यार होता है. दुश्मनी पुरानी है.


कुश : यदि किसी दिन अंतरिक्ष से एक ऊडन तश्तरी आपके घर पर उतरे तो?
शिव जी : समीर भाई के स्वागत में पलकें बिछा देंगे. साथ में नारा....धन्यभाग हमारे जो समीर भाई पधारे.


कुश : गंजे के सर पर बाल क्यो नही होते?
शिव जी : फिसल कर गिर पड़ते हैं.


कुश : यदि आपको एक ब्लॉग को डिलीट करने का मौका मिले तो किसका ब्लॉग डिलीट करेंगे? और क्यो?
शिव जी : ऐसा सवाल मत करो. मैं एक ब्लॉग का नाम लूँगा तो बाकी के नाराज़ हो जायेंगे कि उनके ब्लॉग का नाम क्यों नहीं लिया? मैं किसी को नाराज़ नहीं करना चाहता.


चलते चलते एक और प्रश्न..
कुश : हमारे ब्लॉगर मित्रो से क्या कहना चाहेंगे आप?
शिव जी : कुश की काफ़ी पीने आईये. काफ़ी तो अच्छी है ही, कुश की 'मेहमानियत' भी अद्भुत है.


कुश : शुक्रिया शिव जी आपने हमारा निमंत्रण स्वीकार किया और कॉफी पीने आए.. ये लीजिए हामरी तरफ से एक गिफ्ट हेम्पर.. घर जाकर खोलिएगा.. और अपनी अगली पोस्ट में बताएगा की क्या मिला आपको?
शिव जी : यहीं खोलने दो न यार. क्या कहा? यहाँ नहीं! अच्छा ठीक है. घर ले जाकर खोलूँगा और उसपर एक पोस्ट भी लिखूंगा.

तो दोस्तो ये था हमारा कॉफी विद कुश का एक और एपिसोड एक बेजोड़ प्रतिभा के धनी शिव कुमार मिश्रा जी के साथ.. उमीद है आपको पसंद आया होगा.. अगले एपिसोड में हम फिर मिलेंगे.. हमारे ही बीच के एक और ब्लॉगर के साथ.. तब तक के लिए... 'कीप ब्लॉगिंग'...

जानिए कौन है कॉफी विद कुश के अगले मेहमान

नमस्कार दोस्तो..
इस बार कॉफी विद कुश में हम लेकर आने वाले है एक ऐसा ब्लॉगर जिनसे पूरा ब्लॉग जगत परेशान है.. जी हा दोस्तो मैं बात कर रहा हू.. समीर जी के शब्दो में 'एक उच्च कोटि के व्यंग्यकार' कलकता निवासी शिव कुमार मिश्रा की..

तो तैयार रहिए पिछले पंद्रह दिनो के प्रयास से चले आ रहे इस इंटरव्यू के लिए.. सोमवार दिनांक 25 अगस्त को आपके अपने ब्लॉग कॉफी विद कुश पर..

और हाँ देर मत करिए जल्द से जल्द लिख भेजिए आपके सवाल जो आप पूछना चाहते है शिव कुमार मिश्रा जी से..

तब तक के लिए आप आनंद लीजिए एक नये कम्यूनिटी ब्लॉग नेस्बी का..

एक मुलाकात अनोनामस से.. (कॉफी विद कुश)

नमस्कार दोस्तो,
स्वागत है आपका 'कॉफी विद कुश' के नौवें एपिसोड में.. आज हम आपको मिलवाने वाले है एक ऐसी सख्शियत से जिनसे परिचित तो सब है मगर नाम कोई नही जानता.. ब्लॉगर्स की डिमांड पर हम लेके आए है हम सबके प्यारे "अनोनामस जी" को ..जो यहा वहा कही पर भी टिप्पणी देने पहुँच जाते है.. टिप्पणियो में तो कई बार आपकी इनसे मुलाकात हुई होगी.. पर आज पहली बार कॉफी विद कुश के मंच पर हम आपको मिलवाते है खुद अनोनामस जी से..

कुश : नमस्कार अनोनामस जी.. स्वागत है आपका कॉफी विद कुश में..
अनोनामस जी : शुक्रिया कुश, बहुत अच्छा लगा की हमे भी कोई कॉफी पिलाने वाला है.. हमे तो लगा की आप सिर्फ़ नामदार ब्लॉगरो को ही कॉफी पिलाते है

कुश : नही नही ऐसी बात नही हमारी कॉफी तो सबके लिए है.. बस जो पहले मिल जाए उसी को पकड़ लेते है..
अनोनामस जी : फिर भी आप एक अच्छा कार्य कर रहे है, मुझे खुशी हुई इस तरह का अनूठा प्रयोग देखकर.. मगर आप कुछ ब्लॉगर्स को मत बुलाइएगा वो यहा आने के लायक नही है

कुश : अच्छा? और वे ब्लॉगर कौन है?
अनोनामस जी : इतनी जल्दी सब कुछ बोल दु, बिना कॉफी पिलाए भगाना चाहते है क्या?

कुश : अरे नही नही, आप तो हमारे मेहमान है.. ये लीजिए आपकी गरमा गरम कॉफी तैयार है..
अनोनामस जी : शुक्रिया, वाह बड़ी शानदार कॉफी है ये तो..

कुश : वैसे तो मैं सबसे यही सवाल करता हू की उन्हे कौनसे ब्लॉग पसंद है.. पर मुझे लगता है आपको कोई ब्लॉग पसंद नही तो आप अपनी नापसन्द वाले ब्लॉग बता दीजिए
अनोनामस जी : नही जी, ऐसी बात नही है की मुझे कोई ब्लॉग पसंद नही.. मैं अशोक पांडे जी का कबाड़खाना पढ़ता हू, राजेंद्र त्यागी जी का ओशो चिन्‍तन मुझे पसंद है.. आलोक पुराणिक जी की अगड़म बगड़म मुझे पसंद है.. राज भाटिया जी का शिकायत वाला ब्लॉग बढ़िया है.. अमर कुमार जी का बच्चो वाला ब्लॉग बढ़िया है.. अजीत जी का शब्दो का सफ़र..

कुश : अरे वाह काफ़ी लंबी पसंद है आपकी.. और कौन से ब्लॉग नही पसंद है आपको?
अनोनामस जी : हा हा हा इतनी आसानी से पकड़ में नही आने वाले हम.. हा मगर हमको मैडम जी का ब्लॉग पसंद नही है.. फालतू की बात करती है..

कुश : ये मैडम जी कौन है?
अनोनामस जी : अजी इस अनाम से नाम पूछना चाह रहे है..

कुश : पर आपका कोई नाम तो रखा होगा आपके माँ बाप ने
अनोनामस जी : जी हा रखा तो था पर वो हमने डूबा दिया.. इधर उधर घटिया से घटिया शब्दो में टीपिया टीपिया के.. सो अब लेना उचित नही लगता.. अब तो जब भी अपना नाम लेता हू तो लगता है गाली है..

कुश : ये तो बड़ी विकट समस्या है.. खैर आपके बचपन के बारे में बताइए?
अनोनामस जी : बचपन सारा अनामी में बिता.. अंधेरे में जामुन तोड़ के खाना, चंदा नही देने वाले के घर के दरवाजे पे गालिया लिखना.. लड़कियो के घरो में ब्लॅंक कॉल करना.. यू कह लीजिए अब तक जीवन हमने गुमनामी में ही बिताया है.. और यही आशा करते है की बाकी का भी यू ही बीते..

कुश : ज़रूर हम आशा करते है आपकी गुमनामी यूही बरकरार रहे.. अच्छा एक बात बताइए समीर जी को आपने क्यो कमेंट किया था वो तो सबके चहेते है..
अनोनामस जी : यही तो बात है की वो सबके चहेते है और हमे कोई पूछता ही नही.. बस खुन्नस के मारे कमेंट दे डाला.. पर वो भी बड़े चालक है उन्होने ब्लॉग पर टिप्पणी सक्षम लगा रखा है.. पर उन्होने जब दूसरे दिन हश हश नागराज वाली पोस्ट लिख डाली तो हम शर्म से डूब कर पानी पानी हो गये.. हमे लगा ग़लत आदमी से पंगा ले लिया है..

कुश : तो इसका मतलब आपको टिप्पणी देने के बाद पछतावा भी होता है?
अनोनामस जी : जी हा कभी कभी होता भी है पर क्या करू आदत से लाचार जो हू.. दिल है की मानता ही नही..

कुश : आपने मेरी एक दूसरे ब्लॉग पर लिखी गयी पोस्ट पर भी टिपण्णी दी थी?
अनोनामस जी : अजी साहब क्यो शर्मिंदा कर रहे है.. सौ जूते मार लीजिए सर पर, मगर उन बातो को याद मत कीजिए.. जीवन की सबसे बड़ी भूल थी वो, दरअसल कुछ ग़लतफहमी हो गयी थी.. मुझे लगा वो ब्लॉग आपने शुरू किया है..

कुश : अगर मैं शुरू करता भी तो क्या बुरा था इसमे?
अनोनामस जी : अजी क्यो बुरा नही था. वहा पर नारी मुक्ति जैसे विषयो पर बात होनी थी.. इन विषयो पर पहले ही इतने ब्लॉग बने जा चुके है.. मुझे बुरा तब लगता है जब देखता हू की हमारी बहने ही आपस में एक नही है.. दो अलग अलग ब्लॉग बना रखे है.. इधर वाले उधर नही जाते उधर वाले इधर नही आते.. आपस में ही एकता नही है तो फिर क्या कहना..

कुश : अरे मगर ब्लॉग तो स्वतंत्र माध्यम है.. कोई भी जितने चाहे उतने बना सकता है.. आप चाहो तो आप भी बना लो..
अनोनामस जी : हा मगर जब एक जैसे ही विषय हो और एक जैसी ही चर्चा तो दो अलग ब्लॉग क्यो?

कुश : खैर इन सब बातो का फ़ैसला उन्हे ही लेने दीजिए जिनके वो ब्लॉग है.. आप तो ये बताइए की प्रशांत के ब्लॉग में क्या कमी थी जो आप वहा भी टिप्पणी छोड़ आए?
अनोनामस जी : अजी आप कहा कहा से पुरानी पोस्ट उखाड़ उखाड़ के ला रहे है.. वो तो उस दिन यूही लिख दिया था.. मूड ठीक नही था.. बाद में अफ़सोस भी हुआ की क्या पूरे ब्लॉग जगत को सुधारने का ठेका मैने ले रखा है? मगर क्या करू जैसा मैने कहा आदत से लाचार हू..

कुश : आप तो सुनील डोगरा 'जालिम' की ब्लॉग पर भी हंगामा कर आए थे..
अनोनामस जी : अजी उसकी तो बात ही ऐसी थी.. कितना घटिया शीर्षक था उसका..

कुश : मगर ये फ़ैसला करने वाले आप कौन है की शीर्षक कितना घटिया है और अच्छा?
अनोनामस जी : कैसी बाते कर रहे है कुश भाई, उसने वहा क्या लिखा था आपको मालूम है? ये सब पाठक बटोरने वाले काम है सस्ती पब्लिसिटी के सिवा कुछ नही..

कुश : ठीक बात है मगर देखिए उसने ये साबित कर दिया की लोग क्या पढ़ना चाहते है, उसने घटिया शीर्षक लिखा और आप वहा पहुँच गये.. क्यो आपने उसे इग्नोर नही किया.. कीचड़ में पत्थर उछाला जाता है क्या?
अनोनामस जी : अरे लेकिन मुझसे रहा नही गया, शीर्षक ही ऐसा था

कुश : देखा आप लोग ही तो बढ़ावा देते हो पढ़कर पढ़कर.. उस दिन ब्लॉगवानी में वो सबसे ज़्यादा बार पढ़ा गया चिट्ठा था..
अनोनामस जी : लेकिन आपको कैसे पता इसका मतलब आप भी गये थे वहा

कुश : हा बिल्कुल, मैं गया था मगर दूसरे दिन वो भी इतनी टिप्पणिया देखकर और सच मानिए जितनी जल्दी गया था उतनी जल्दी लौट आया..
अनोनामस जी : हा मगर मैं आपकी तरह नही हू.. मैं तो सबकी ********** (कॉफी विद कुश में तरह के शब्दो पर रोक है, इसलिए आपको स्टार नज़र आ रहे है)

कुश : मगर ये सब करने से आपको का लाभ होता है?
अनोनामस जी : आत्म संतुष्टि मिलती है और क्या?

कुश : सिर्फ़ यही कारण तो नही होगा इतना सबकुछ करने का?
अनोनामस जी : ठीक कहा आपने.. दरअसल मैं ये दिखाना चाहता हू की यहा पर कोई भी शरीफ नही है.. दिखने मैं चाहे कैसे भी हो पर हर एक के अंदर एक अनोनामस है यहा पर..

कुश : मैं समझा नही आपकी बात?
अनोनामस जी : देखिए ब्लॉगर बढ़िया रहता है जब तक की उसकी ब्लॉग पर अच्छी टिप्पणिया आती रहे.. मगर जैसे ही किसी ने अनोनामसली उसे कुछ कहा वो भी अशिष्ठता की हदे पर कर देता है.. और खुद भी अपशब्दो पर आ जाता है.. फिर मुझमे और उसमे कोई फ़र्क़ नही रहता.. मैं बस दुनिया को यही दिखाना चाहता हू की अंदर से हर ब्लॉगर अनोनामस है


कुश : तो इसका मतलब की आप कुछ भी लिख दे और सामने वाला जवाब भी ना दे?
अनोनामस जी : अजी ऐसा हमने कब कहा, दे मगर अच्छे शब्दो में.. जैसे आपने दिया था. अजी मुझे तो काटो तो खून नही था.. मैने तो सोचा की आप भी मुझे गालिया दोगे और मैं ये साबित कर दूँगा की आप भी अंदर से वैसे ही हो .. पर आपने मुझे ग़लत साबित कर दिया.. इसीलिए आज यहा आपसे बात कर रहा हू..

कुश : मेरी बात छोड़िए आप उनकी बात करिए जिन्हे आपने बहुत ग़लत कमेंट दिए.. कुछ टिप्पणिया तो बहुत ही व्यक्तिगत थी?
अनोनामस जी : मैं समझ रहा हू आपका इशारा किस तरफ है.. मगर एक बात बताइए वो तो जाकर टिप्पणियो में उल्टा सीधा लिख आते है.. मगर मैं लिखू तो बेईमानी.. ये कैसा इंसाफ़?

कुश : क्या आपको कभी दुख नही होता?
अनोनामस जी : अजी दुख तो तब होता है जब ये मुझसे मेरी पहचान भी छीन लेते है.. और खुद अनोनामसली मुझसे भी ज़्यादा गंदी भाषा में लोगो के यहाँ जाकर टीपिया आते है..

कुश : लेकिन हम कैसे मान ले की ये वही ब्लॉगर है?
अनोनामस जी : अजी भूल गये आई पी एड्रेस से जैसे आपने हमको पकड़ा था.. वो दिल्ली वाले ब्लॉगर जी जो अनोनामसली सबको टीपियाते है सोचते है पकड़े नही जाएँगे.. पर चोर कभी बचा है क्या.. और फिर आप तो खुद वेबसाइट बनाने वाली कंपनी में हो.. आप से यहा कौन छुपा है.. आप तो दो मिनिट में पता लगते हो..जैसे हमे पता लगाया था

कुश : मगर इन सब बातो से आप कहना क्या चाहते है?
अनोनामस जी : अजी मैं कौन होता हू साबित करने वाला.. यहा तो लोग ही एक दूसरे को साबित करने में लगे रहते है.. आपको क्या लगता है मैं अकेला ही अनोनामस हू.. गौर से देखिए कितने ही अनोनामस मिल जाएँगे आपको..

कुश : लेकिन क्यो? ये सब क्यो? कोई शांति से ब्लॉगिंग कर रहा है तो फिर आप उसे क्यो परेशान करते है?
अनोनामस जी : अरे तो शांति से करे अशांति फैलने की क्या ज़रूरत है? कभी कोई दूसरी सीटे से कॉपी करके डाल देता है, कभी कोई मर्दो को गलिया देता है तो कोई औरतो को गलिया देते हुए पोस्ट लिख देता है.. सस्ते प्रचार के लिए लोग उल्टा सीधा करते रहे और मैं कुछ भी ना करू.. इस से तो मैं अपने ज़िम्मेदार ब्लॉगर कर्तव्य से विमुख हो रहा हू..

कुश : लेकिन आपको क्या फ़र्क़ पड़ता है कोई कुछ भी लिखे, अगर आपको लगता है की उनका लिखा बकवास है तो ना जाए पर अपशब्दो का प्रयोग क्यो? बाकी लोग तो नही जाते
अनोनामस जी : बाकी लोग ना जाए तो ना जाए पर मैं इसे अपना फ़र्ज़ समझता हू..

कुश : लेकिन इसे कौन निर्धारित करेगा की ब्लॉग पर क्या लिखा जाए और क्या नही?
अनोनामस जी : ये मैं कैसे बताऊ? मुझे तो ये पता है की ग़लत लिखोगे तो मैं आ रहा हू..

कुश : आपके आने की ज़रूरत नही.. मेरी राय में पाठक खुद निर्धारित करते है की उन्हे क्या पढ़ना है और क्या नही.. सड़क पर खड़ा होकर कोई गाली बोले तो क्या उत्तर में आप भी उसे गाली बोलते है?
अनोनामस जी : नही

कुश : तो फिर जब यहा कोई कुछ ग़लत लिखे तो आप क्यो बोलते है, पाठक उसे अपने आप बर्खास्त कर देंगे.. जैसा की वो करते आए है..
अनोनामस जी : क्या ऐसा संभव है?

कुश : क्यो नही? क्या आपने हमारे पाठको को इतना बेवकूफ़ समझा है की वो उलझलूल लिखने वालो की ब्लॉग पर कमेंट करते भी होंगे.. और यदि करते भी हो तो वो उनकी पसंद है.. जिसे जो पसंद हो वो वही करे.. हम ब्लॉगर है खुदा नही जो दूसरो की किस्मत बदले.
अनोनामस जी : मगर.......

कुश : मगर क्या?
अनोनामस जी : मगर...., रहने दीजिए कुश भाई मैं अभी कुछ कहने की स्थिति में नही हू, पता नही अचानक मुझे क्या हो गया है.. क्या वाकई मैं ग़लत हू?

कुश : आप ग़लत नही है अनोनामस जी, आपने जो किया वो ब्लॉग जगत की भलाई के लिए किया.. कही कही पर खुन्नस भी थी परंतु वो मनुष्य का स्वाभाव है धीरे धीरे बदलता है.. आपने जो किया वो ग़लत नही किया पर ग़लत तरीके से किया.. सारे विवाद बातचीत से ही हल होते है..
अनोनामस जी : आपने ठीक कहा कुश जी मैं यूही बेवजह लोगो को उल्टे सीधे कमेंट देता था.. और यकीन मानिए मुझे रात को नींद भी नही आती थी.. पता नही मैं क्या से क्या हो गया..

कुश : आप अगर मेरी सलाह माने तो एक बात कहु?
अनोनामस जी : हा कहिए कुश भाई

कुश : आप आज इस मंच पर यहा सभी से माफी माँगे और अपनी ग़लती का प्रायश्चित करे.. मैं जानता हू की हमारा ब्लॉग जगत का परिवार आपको माफ़ करेगा..
अनोनामस जी : मैं आप सभी महानुभावो से अपने किए हुए सभी अभद्र टिप्पणियो के लिए क्षमा चाहता हू.. भूलवश यदि मैने आपको दुख पहुँचाया हो या आपको ठेस पहुँची हो तो मुझे नासमझ मान कर क्षमा करे.. भविष्य में आपको इस प्रकार का कोई अवसर नही दूँगा

कुश : बहुत बहुत शुक्रिया अनोनामस जी, ये मेरे लिए हर्ष की बात है की आज अपने कॉफी विद कुश के मंच पर ब्लॉग जगत के कल्याण के लिए सभी से माफी माँगी.. इसके लिए मैं खड़े होकर आपका अभिवादन करता हू..
अनोनामस जी : कुश भाई इतना प्यार अगर मुझे पहले ही मिल जाता तो शायद मैं कभी अनोनामस बनता ही नही.. आज तो आपने मेरी आँखो में आँसू ला दिए..

कुश : मुझे उमीद है आपके इस निर्णय में ब्लॉगर परिवार के सभी सदस्य साथ होंगे.. मैं सभी से प्रार्थना करता हू की अनोनामस जी की भूल को माफ़ करके हिन्दी ब्लॉग्गिंग को नया आयाम प्रदान करे..

कुश : तो फिर अब चले वन लाइनर राउंड की तरफ?
अनोनामस जी : कुश भाई ये राउंड किसी और दिन कर ले? अभी तो दिल घबरा रहा है की सब लोग मुझे माफ़ करेंगे या नही..

कुश : कोई बात नही अनोनामस जी, ये हम किसी और दिन कर लेंगे.. जाते जाते आप हमारे ब्लॉगर मित्रो से कुछ कहना चाहेंगे?
अनोनामस जी : मैं अपने मित्रो को बस यही कहूँगा की जो भूल मैने की है वो आप कभी मत करे, बहुत आसान है किसी को बुरा बोलना.. मगर मुश्किल है किसी के बारे में दो शब्द प्यार के बोलना.. प्यार से सबके साथ मिलकर रहे बस मेरी यही कामना है..

कुश : बहुत बहुत शुक्रिया अनोनामस जी आप यहा आए और इतनी बढ़िया बातचीत की.. ये हमारी तरफ से आपको एक गिफ्ट हेम्पर..
अनोनामस जी : बहुत बहुत शुक्रिया कुश जी, इतना प्यार और सम्मान देने के लिए शुक्रिया ये इंटरव्यू जीवन भर मेरी यादो से जुड़ा रहेगा..

तो दोस्तो ये था हमारा कॉफी विद कुश का नौवाँ एपिसोड अनोनामस जी के साथ.. कैसा लगा आपको ज़रूर बताईएएगा.. और ये भी बताईएगा की आपने उन्हे माफ़ किया या नही.. अगले सोमवार हम फिर मिलेंगे हमारे ही बीच के एक और ब्लॉगर से.. तब तक के लिए शुभम!

ब्लॉग जगत में पहली बार आ रहे है अनोनामस जी


नमस्कार मित्रो,

कॉफी विद कुश में अब तक आप मिल चुके है ब्लॉग जगत के कई ऐसे जाने माने ब्लॉगरो से जिनके नाम से सभी परिचित है.. मगर ये हमारा सौभाग्य है की पहली बार आ रहे है 'कॉफी विद कुश' के इतिहास में एक ऐसे ब्लॉगर जिनसे परिचित तो सब है मगर नाम कोई नही जानता .. जी हाँ दोस्तो इस सोमवार हम मिलवाने वाले है आपको "यत्र तत्र सर्वत्र" पाए जाने वाले ब्लॉगर "अनोनामस जी" से ..

और हा एक और बात ये अनोनामस जी ब्लॉग जगत के कई राज़ भी खोलने वाले है.. तो बस दिल थाम के बैठ जाइए..

नोट : आप भी पूछ सकते है अनोनामस जी से सवाल..